“ तेरी रूह से मुखातिब हूँ ना
की तेरे रुक्सार से ........”
राघव उन दिनों एक
बहुराष्ट्रीय कंपनी में मेनेजर के पद पर कार्यरत था. चूँकि कुछ ही समय पहले उसकी
नौकरी लगी थी तो वो पूरी शिद्दत से अपने काम करने में लगा रहता था. वो अपने काम को
पूरा करते-करते अपने सपने भी पूरे कर रहा था. कठोर परिश्रम और न जाने कितने त्याग
के बाद ये मौका उसे मिला था. उसकी जिंदगी
बोहोत तेज़ी से आगे बढ़ रही थी कुछ ही समय में उसने उस कंपनी में अपनी एक अलग पहचान
बना ली थी. कम्पनी के प्रतिष्ठित भागीदारों से व्यापर और सम्बन्धी कार्यों के लिए राघव
की सेवाएँ ली जाने लगी. वो कुछ ही समय में
कम्पनी के कॉर्पोरेट ऑफिस में VP के पद पर कार्यरत हो गया. वो और उसका परिवार
बोहोत खुश थे. राघव ने अपने बोहोत से सपने
पूरे कर लिए थे और नए की फेहरिस्त बनाने में मशगूल था. राघव अपनी जिंदगी से पूरी तरह से खुश था और जिंदगी को
जी रहा था.
उस दिन ऑफिस में और दिनों के विपरीत ज्यादा
हलचल थी कारण था नयी कंपनी के साथ व्यापारिक रिश्ते शुरू होने वाले थे. उस कम्पनी
के साथ जिन लोगों की मीटिंग थी उनमे राघव भी शामिल था. जितना बाकी लोग उस मीटिंग को लेकर उत्सुक
थे उतना राघव भी. सबकी कोशिश यही थी की उस
कम्पनी के साथ डील फाइनल हो जाए. उस दिन मीटिंग बढ़िया रही और डील फाइनल हो गयी और
कम्पनी के साथ एक और बड़ा नाम जुड़ चुका था. कागजों पर जो लिखा था अब उसे ज़मीन पर
उतारने का समय आ चुका था. एक नयी टीम बनायीं गयी जिसमे राघव भी था. राघव की कम्पनी के लोगों को दूसरी कम्पनी की साईट पर
जाकर काम करना था. कंपनी के लोग साईट पे पहुंचे उनको कुछ परेशानियाँ आयीं उनको टीम
ने दुरुस्त किया लेकिन बाद में ये बढ़ते गए और फिर एक दिन राघव को टीम के साथ साईट पर जाना पड़ा. राघव जैसे ही साईट पे पहुंचना मानो उसकी जिंदगी रुक
सी गयी आगे बढ़ने के वजाए पीछे की ओर दौड़ने लगी और ना जाने कहाँ ले गयी. उस दिन राघव
कुछ ज्यादा ना बोला केवल उसने दिक्कतों को
दूर करने पर बात की और चला आया. उसके वापस जाने का कारण थी रिद्धिमा .
उस रात राघव दफ्तर से देर से गया और
घर ना जाकर मरीन ड्राइव पर रुक गया और ड्राईवर से बोला आप गाड़ी ले जाओ में आ
जाऊँगा. आज वो बदला हुआ था उसके दिमाग में बोहोत कुछ चल रहा था शायद जिसका ओर-छोर उसे
भी नहीं पता था. घर से फ़ोन आने पर उसने कह दिया काम ज्यादा है रात ज्यादा हो
जाएगी. वो उस रात 3 बजे घर पहुंचा. सुबह वो जब ऑफिस पहुंचा तो देखा कंपनी के चेयरमैन और सभी अधिकारी वहां मौजूद हैं. राघव के पहुँचते उसे भी वहां बुला लिया गया और उसे ये
बताया गया की उसे रिद्धिमा की कंपनी में
रोज़ 4-5 बजे तक जाना होगा ताकि उनका नया साथी डील कैंसिल ना दे. डील कैंसिल होना
मतलब 10-12 करोड़ का नुकसान. राघव को ना
चाहते हुए भी हाँ करना पड़ा.
उसी शाम जब वो साईट पर पहुंचा तो देखा रिद्धिमा
उसके सामने बैठी हुई है. वो उस कम्पनी में
GM थी. उस शाम वो काम ख़त्म करके वहां से चला गया. ऐसा कई दिनों तक चलता रहा पर अब
उसका मन स्थिर हो चुका था. अब वो रिद्धिमा
को देखकर पीछे नहीं चला जाता था. एक दिन
काम ज्यादा होने के कारण राघव को देर तक
रुकना पड़ा उस दिन ना जाने कितने सालों बाद उसकी बात रिद्धिमा से हुई. उस दिन दोनों ने एक-दूसरे से बात तो की लेकिन
ऐसे जैसे एक दुसरे को जानते ना हों. अब वो बात करने लगे थे लेकिन उन दोनों के
दिमाग दिमाग में कुछ ऐसा चलता जो उन्हें बात पूरी ना करने देता. वो कभी-कभी पुरानी
बातें याद कर लेते लेकिन उस दिन की बात ना करते जो उनकी आखरी मुलाकात थी. काम के
साथ-साथ उनकी दोस्ती दुबारा बढती गयी पर वो कभी पुरानी बातें नहीं करते. अब राघव का काम ख़त्म हो चुका था उसकी टीम को तो आना था
पर अब वो नहीं आने वाला था. राघव का रिद्धिमा
की कम्पनी के लोगों से भी अच्छे सम्बन्ध
हो गए थे और उन्हें जब पता लगा की राघव अबसे नहीं आएगा तो उन्होंने एक पार्टी प्लान की
और उसमे सभी गए राघव और रिद्धिमा भी.
पार्टी देर तक चली. सभी ने दिल से डांस
किया और कॉकटेल का मज़ा लिया. अब सबके जाने का समय हो गया था. अगले दिन छुट्टी थी
तो राघव और रिद्धिमा ने तय किया की वो कुछ देर और साथ रहेंगे. दोनों
समुद्र के किनारे टहलने लगे. रात में तारे ऐसे टिम-टिमा रहे थे मानो आकाश से फूलों
की बारिश कर रहे हों. इतने दिनों की दोस्ती में वो ये जान गए थे की दोनों ने अभी
तक शादी नहीं की है. बात करते-करते उन्होंने पुरानी बातें करना शुरू की और ना जाने
कैसे उस आखिरी मुलाकात तक पहुँच गए और खट्टी और कुछ मीठी बातों के बाद अचानक रिद्धिमा
ने पूछा राघव तुमने उस दिन ऐसा क्यूँ कहा था ? राघव जिस बात को टाल रहा था वो उसके सामने थी पर आज
का राघव पुराना राघव नहीं था. उसने कहा उस समय हममे काफी अंतर थे और
तुमने अपने दोस्तों के कारण शायद मुझे महत्व नहीं दिया था पर मैं तब भी सच्चा था
और आज भी. तब मैंने सीधे तुमसे ये नहीं कहा था पर आज कहता हूँ - "तेरी रूह से
मुखातिब हूँ ना की तेरे रुक्सार से......"
इतना बोलते ही दोनों शांत हो गए. समुद्र
की लहरें मानो उस सन्नाटे को चीरना चाहती थीं पर वो उन दोनों के सामने कमज़ोर लग
रहीं थीं. टिम-टिमाते तारे कहीं खो से गए. उस अँधेरे में ऐसा लग रहा था मानो मोम
के दो बुत खड़े हों.
सानिध्य पस्तोर