गर्मी के मौसम को दस्तक दिए तो मानो अरसा गुज़र गया हो, अब तो गर्मी अपने रोद्र
रूप में हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये हुए है. हम सभी जानते हैं की गर्मी का मौसम
बसंत ऋतू के समाप्ति के साथ ही आरम्भ हो जाता है, जो होली के त्यौहार के साथ आता
है और वनमहोत्सव के पहले-पहले हम सभी से विदा भी ले लेता है. ग्रीष्म ऋतू का अपना
ही महत्व है इस दौरान पानी भाप बनकर बादलों से मुलाकात करने चला जाता है और वर्षा
ऋतू के दौरान वापस पृथ्वी पर जीव-जंतुओं और प्राणियों को नयी ऊर्जा और जीवन देने
वापस आ जाता है. ये बात अलग है की कहीं वर्षा ज्यादा है तो कहीं कम इसका कारण भी
हम सभी जानते हैं, भोगोलिक परिस्तिथियों के अलावा वन और हरे-भरे पेड़ भी अच्छी वर्षा
में अपना योगदान देते हैं. लेकिन इस गर्मी के बढ़ते ताप को हम सभी महसूस कर रहे हैं
और प्रयास कर रहे हैं उसको कम करने का
परन्तु हम इसमें सफल नहीं हो रहे हैं. अभी तो अप्रैल माह है मई माह पूरा और जून का
दो-तिहाई माह बाकी है. अभी तो हम ताप से प्रभावित हैं हमे ऊष्मा का भी सामना करना
है. उसी के बाद वर्षा होगी और पानी की बूँद जब मिट्टी पर पड़ेगी तो उससे उठने वाली
जो खुशबू है वो हम सभी को ऊर्जा प्रदान करेगी.
लेकिन इस बढ़ते ताप का क्या करें? पारा दिन प्रति दिन ऊपर बढ़ता जा रहा है और हम
सभी उसके ताप को झेल रहे हैं. हम मानव तो कहीं पंखे तो कहीं वातानुकूलित उपकरण का
सहारा ले लेते हैं. पीने के लिए मटके या फ्रिज के पानी का उपयोग कर लेते हैं और
उम्मीद करते हैं की इस बार अच्छी वर्षा होगी. पर उन पशु-पक्षियों का क्या जो बोल
नहीं पाते जिनके लिए आसरा या तो पेड़ है या किसी कांक्रीट से बनी इमारत की परछाई.
उन पेड़ों का क्या जिन्हें पानी देने वाला कोई नहीं है वे केवल ज़मीन के नीचे उपलब्ध
जल और वर्षा पर निर्भर हैं. मुख्य नदियों में जल कम होता जा रहा है उनकी सहायक
नदियाँ नाले सूख गए हैं. नदियाँ अपने घाट
से दूर होती जा रही हैं. तालाब और पोखर भी इस ताप से अछूते नहीं हैं. इन पानी के
स्रोतों के सूखने से ना केवल इसमें रहने वाले जलीय प्राणी प्रभावित होते हैं बल्कि
इन स्रोतों पर निर्भर मनुष्य और उसके पालतू जानवर भी प्रभावित होते हैं. वनों में
रहने वाले वन्य प्राणी भी कभी-कभी पानी की
तलाश मे मानव बसाहट के पास तक आ जाते हैं और किसी अनहोनी का शिकार भी हो जाते हैं.
इस बढ़ते ताप से आप और हम ही नहीं सभी जीव-जंतु प्रभावित होते हैं. इस बढ़ते ताप का
मुख्य कारण है ग्लोबल वार्मिंग, इसके कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है जिसके कारण
ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र के पानी का स्तर बढ़ रहा है. इसके मुख्य कारण हैं
बेतरतीब औध्योगिकरण, वनों की कटाई, दूषित जल, पेट्रोलियम पदार्थों का प्रयोग एवं
अन्य.
लेकिन ये चीज़ें भी जरूरी हैं हमारी जनसँख्या बढ़ रही है उसको रहने के लिए
कांक्रीट के घर बनाने होंगे, उसको भोजन उपलब्ध करने के लिए खेती करनी होगी जिसके
लिए कुछ पेड़ भी काटने होंगे, उसको आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए उद्योग और
कारखाने भी लगाने होंगे सभी कुछ करना होगा. लेकिन सबको करते वक़्त तय किया जाना
चाहिए की पर्यावरण को कम से कम नुक्सान हो और नियमों का पालन हो इसको भी देखना
चाहिए. कुछ कार्य जो किये जा सकते हैं वे हैं, ख़राब गुणवत्ता की पॉलिथीन पर
पूर्णतः रोक, उद्योगों के कचरे को जल स्रोतों में मिलाने पर रोक या उस कचरे के
बेहतर प्रबंधन के लिए योजना, पेड़ों को
लगाने के साथ-साथ उनकी देखरेख, पर्यावरण के प्रति लोगों को और जागरूक करना, पब्लिक
ट्रांसपोर्ट सिस्टम को और बेहतर करना, रीसाइक्लिंग के प्रति लोगों को जागरूक करना
एवं अन्य. ये कुछ ऐसे कदम हैं जिनसे हम इस गर्मी की ताप को कम कर सकते हैं और
पर्यावरण संरक्षण में एक सकारात्मक योगदान कर सकते हैं. जिससे हमारे साथ-साथ हमारी
आने वाली पीढ़ी भी इस गर्मी के ताप को कम महसूस करे वर्ना उसे भी हमारे साथ-साथ गर्मी
की ताप से ऊष्मा की बेचैनी तक का पूरा चक्र देखना पड़ेगा और महसूस भी करना पड़ेगा जो
आप और हम चाहेंगे.
सानिध्य पस्तोर
Bilkul Satya hai,vartman samaj mein parivartan ke liye bahut se steps uthane ki jarurat hai 👌👌
ReplyDeletebilkul
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