कुछ साल पहले एक गुड़िया ने एक परिवार में जन्म लिया जिसकी मीठी किलकारियों से पूरा आंगन चहक उठा. उसके आने के बाद घर का आंगन हंसी, किलकरी और रोने से गूंजने लगा. गुड़िया के आने के बाद रक्षाबंधन का त्योहार भी जीवंत हो उठा और सभी भाइयों की कलाइयां रेशम के धागे से सज गयी. सभी भाई-बहन आम परिवार के बच्चों की तरह कभी लड़ते तो कभी एक दूसरे के लिए रोते. कभी-कभी हंसी मजाक में उस गुड़िया से ये भी कह देते की तुम्हारी शादी ऐसी जगह करवा देंगे तो कभी वैसी जगह करवा देंगे. ना उस समय किसी को पता था कि शादी का महत्व क्या है और शादी की वास्तविकता क्या है. बस कभी लड़ाई करते वक़्त या कभी खुशी में बस शादी का ज़िक्र कर दिया करते. और देखते ही दखते ना जाने कब सभी भाई-बहन बड़े हो गए और वो गुड़िया शादी के बंधन में बंधने को चल पड़ी. गुड़िया की पढ़ाई पूरी हो गयी और उसने अपनी कड़ी मेहनत और पढ़ाई से एक अच्छा पद भी ग्रहण कर लिया और उसके बाद उसकी शादी की तैयारी शुरू हो गईं. और कुछ दिनों बाद गुड़िया की शादी तय हो गयी और शायद उसी दिन से उसकी विदाई की तैयारी शुरू हो गयी लेकिन शायद किसी को इसका अभास भी नही था. अभी तो तय हुआ कि सगाई होगी फिर कुछ समय बाद शादी होगी पर शायद तब भी ज़्यादतर परिवार को अभी भी नही लग रहा था कि हमारी गुड़िया विदा होने वाली है. समय बीतता गया और सगाई की तारीख नज़दीक आ गयी और सभी लोग तैयारियों में जुट गए उस दिन सबको लगने लगा हमारी गुड़िया विदा होने वाली है और भाइयों की बहन अब अपने दूसरे घर में चली जाएगी. शायद सगाई के बाद एहसास हुआ कि गुड़िया अब राखी, दीवाली और होली का टीका करने अपने दूसरे घर से आएगी और जिस गुड़िया को हम मज़ाक में कहते थे शादी करवा देंगे उसकी वाकई में शादी होने वाली है और विदा होने वाली है. समय बीतता गया और शादी की घड़ी आ गयी सभी शादी के कार्यक्रमों में सम्मिलित हुए और खुश थे. लेकिन मन में कहीं ये था कि गुड़िया कुछ दिनों बाद विदा हो जाएगी. वो पावन बेला भी आ गयी जिसका सभी को इंतज़ार था. हमारी गुड़िया को लेने बारात द्वार पर आ गयी और वरपक्ष और वधूपक्ष इस पावन बेला के साक्षी बनने को लेकर प्रफुल्लित है. गुड़िया मंडप की ओर आने लगी और आंखों के सामने मानो बचपन से आज तक का पूरा चित्रण होने लगा वो लड़ना-झगड़ना वो खेलना वो एक दूसरे का इंतज़ार करना सब आंखों के सामने आने लगा और गुड़िया अपने अपने गुड्डे के साथ रश्म पूरी करने लगी.कहीं रश्में हो रहीं हैं और गाने गाए जा रहे तो कहीं बातें हो रहीं हैँ और ऐसे ही ऐसे सवेरा हो गया और गुड़िया की विदाई का वक़्त आ ही गया. सभी बहुत खुश हैं गुड़िया की शादी है पर थोड़ा दुख है कि गुड़िया अपने दूसरे घर जा रही है. आंखों में जितने खुशी के आंसू हैं उनमे कुछ दुख के भी हैं. अब गुड़िया हर बार घर आने पर नही मिलेगी उससे मुलाकात शायद अब त्योहारों पर ही हो पाएगी. गुड़िया सच में विदा हो रही है जिसका एहसास सगाई की शाम को हुआ था वो आज वास्तविकता में सच हो रहा है. गुड़िया विदाई को तैयार है सभी उसको विदा कर रहे हैं और उसके नए सफर की शुभकामनाएं दे रहे हैं. हमारी गुड़िया को उसको गुड्डा अपने घर लेकर जाने लगा और हमारी गुड़िया विदा हो गयी. शायद सही ही कहा जाता है कि बेटी पराया धन होता है. पर ये भी उतना ही सही है कि जितनी खुशी सभी को गुड़िया के जन्म पर हुई थी उतनी ही खुशी गुड़िया की विदाई पे भी हुई। बस गुड़िया अब शायद परायी हो गयी.
सानिध्य पस्तोर
Adhbhut..Ek sachai Jo padhne par bidai ke mahol KO jeewant karti hai..😊 shandar dada
ReplyDelete😊😊
ReplyDeleteTruly beautiful,. Very well written ,. Mano jaise aankhon se dekhi abhi Vidayi,. Proud of you Sanidhya
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteBeautiful narration
ReplyDeleteThank you for appreciation
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ReplyDeleteBeautifully written bro.....
ReplyDeleteBeautiful lines..!!
ReplyDeleteGreat narration..!!!
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