Thursday, March 30, 2017

ज़िम्मेदारी किसकी

कितनी गर्मी पड़ रही है, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ, मार्च में ही मई का एहसास हो रहा है मई में क्या होगा, कूलर-पंखे तो मनो काम ही नही कर रहे हैं, पानी भी कम आने लगा है और ना जाने कितने अनगिनत सवाल हमारे दिमाग में घूम रहे हैं, हो भी क्यूँ नहीं हम ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ पेड़ों का स्थान कंक्रीट ने ले ली है, चिड़िया की मधुर आवाज़ की जगह धुंआ छोड़ते वाहनों ने ले ली है और भी अन्य कारण है इस मौसम या कहें अचम्भे के लिए. यही है जिसे हम आम भाषा में ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं. शायद अब देर हो चुकी है क्यूंकि हम अभी भी वन, वन्यजीवन, पानी के स्रोतों के बारे में और उनमे रहने वाले जलीय जीवों के बारे में संवेदनशील नहीं हुए हैं और यदि और देर हो गयी तो हम इसका विकराल रूप अंटार्टिका महादीप पर और हमारे देश में गौमुख ग्लेशियर पर देखेंगे. हमने अभी कुछ ही समय में अचंभित करने वाली अनके घटनाएँ देखी हैं उनमे प्रमुख हैं दिल्ली शहर का स्मोग, बेंगलुरु में पानी की झील में आग. ये दो प्रमुख घटनाएँ हमे बताती हैं की हम किस दिशा में और कितनी तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
  अगर हम चाहें तो अभी भी इस ग्लोबल वार्मिंग को कम कर सकते हैं क्यूंकि हम इसे ना तो ख़त्म कर सकते हैं ना ही रोक सकते हैं. इसके लिए हमे सबसे पहले हमे स्वयं में परिवर्तन लाना होगा जिसका उद्देश्य स्वयं को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना होगा और फिर अपने आस-पास के लोगों को संवेदनशील बनाना होगा. सबसे ज्यादा ज़रूरी है बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और कारखानों को संवेदनशील करना और सरकार के विभागों को एकजुट करने इसके प्रति. जो कारखाने अपने दूषित कचरे के सीधे जल स्रोतों में डालते हैं और अपने आस-पास के वन्यजीवन को प्रभावित करते हैं उनपर भारी जुर्माना लगाना चाहिए और दंडात्मक कार्यवाही भी करनी चाहिए. यदि मेगी बनाने वाली कंपनी नेस्ले पर प्रतिबन्ध लग सकता है तो इन कारखानों पर क्यूँ नहीं. सरकार को अवैध खनन, वनों की कटाई और पहाड़ों पर अतिक्रमण को रोकना होगा. विकास ज़रूरी है क्यूंकि हमे लोगों को रोज़गार, रहने को छत और जीवनयापन के संसाधन देने हैं पर हमे साथ में पर्यावरण को भी संरक्षित करना है.
 हम सभी को आगे आना चाहिए अपने-अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए और लोगों को वृक्ष लगाने के लिए और उनकी देखभाल करने के लिए संवेदनशील बनाना होगा. हमे विकास की जितनी ज़रुरत है कारखानों, सड़क, मूलभूत सेवाएं उतनी ही ज़रुरत है पर्यावरण संरक्षण की. हमें पर्यावरण के अस्तित्व या महत्व को नहीं भूलना चाहिए वर्ण अहुमे ये भी नहीं कहना चाहिए की गर्मी बहुत है या मौसम परिवर्तन के लिए कौन ज़िम्मेदार है. ये हम सोचन है की ज़िम्मेदार कौन और ज़िम्मेदारी किसकी?

सानिध्य पस्तोर

31 March 2017

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