तो हमेशा की तरह यात्रा शुरू हुई गूगल बाबा से मदद लेने के बाद. पर इस बार वो भी कुछ ख़ास मदद नहीं कर पाए. तो मदद ली गयी फैक्ट्री में उपस्तिथ अधिकारियों. गूगल बाबा ने इतनी तो मदद कर दी थी की हम नंदुरबार जहाँ हमे जाना था वहां की भौगोलिक परिस्तिथियों से वाकिफ करा दिया था और बता दिया था की ये जिला है और जनसँख्या करीब 15 लाख है. तो साहब से सवाल किया गया की धुले जहाँ से यात्रा आरम्भ करनी थी से नंदुरबार कैसे पहुंचा जा सकता है? जवाब था दूरी है 100 km और बस से लगेगा 1.5 घंटा. तो हम बस अड्डे पहुँच गए पुछा शिवशाही AC बस कितनी देर में है? जवाब मिला जो बस आ रही है उसमे जा सकते हो. तो फिर आयी MST सरकारी बस. बस में चढ़ने के बाद महाराष्ट्र सरकार और शिक्षा व्यवस्था पर गर्व हुआ. बस में टिकट बनाने की ज़िम्मेदारी महिला परिचालक की थी. पूरे आत्मविश्वास के साथ वो बुज़ुर्ग यात्रियों की मदद कर रही थी और परिचालन करके चालक की मदद. तब लगा की हाँ ये देश वाकई में बदल रहा है और आगे भी बढ़ रहा है. महिलाओं को यदि अवसर प्रदान किया जाए तो वो पुरुषों के मुकाबले कहीं ज़्यादा सफलता अर्जित कर सकती है. ये कहा जाता है की सरकार बढ़ावा नहीं देती महिलाओं को लेकिन आज वो दावा भी बेअसर होता दिखा. वाकई में जो सम्मान उस महिला परिचालक के लिए था उसके लिए वो, उनका परिवार और सरकार सभी बधाई के पात्र है. आज गणेश चतुर्थी भी है, सभी जगह ढोल-ताशे सुनाई दे रहे थे ऐसा लग रहा था मानो जिस सम्मान की हक़दार वो महिला परिचालक हैं उसको सम्मान देने में भगवन गणेश भी मेरा साथ दे रहे थे.
"नारी वाकई में दुर्गा है जो शक्ति का रूप है"
सानिध्य पस्तोर