वो आखरी रेल
राघव
और रिद्धिमा समुद्र के किनारे एक-दुसरे को देख रहे
थे मानो कुछ कहना
चाहते हों और समुद्री लहरें
टिमटिमाते तारों के साथ इसका
साक्षी बन रहे थे.
राघव ने कुछ कहने
की कोशिश की ही थी
की रिद्धिमा ने कहा रात
काफी हो गयी है
हमे अब घर जाना
जाना चाहिए. दोनों ने कैब बुक
की और अपने-अपने घर की ओर चल
दिए. राघव अपने काम के सिलसिले मैं
मुंबई से बाहर गया
हुआ था पर रिद्धिमा
को इसके बारे में खबर नहीं थी. कुछ दिनों से उनकी बात नहीं हुई
थी.
इस
दौरान रिद्धिमा के दफ्तर में
एक नए लड़के संदीप
ने आमद दी ओर रिद्धिमा
की टीम का ही मेंबर
भी बन गया. रिद्धिमा
ने इस बारे में
राघव को नहीं बताया
था. संदीप के आस-पास
होने से रिद्धिमा को
अच्छा नहीं लगता था. वो रिद्धिमा के
करीब आना चाहता था पर रिद्धिमा
को उसका साथ पसंद नहीं था. वो दूसरों के
ज़रिये रिद्धिमा से घुलना-मिलना चाहता था. उस शाम उसने
रिद्धिमा के केबिन में
आकर उससे कुछ सवाल कर लिए उसकी
बॉडी लैंग्वेज ओर सवाल करने
के तरीके उसको गलत लगे. उस रात राघव
ने रिद्धिमा से बात की
तब रिद्धिमा ने राघव को
इस बारे में बताया, राघव आग बबूला हो
गया. दोनों के बीच कभी
अपने रिश्ते को लेकर बात
नहीं हुई फिर भी राघव से
रहा नहीं गया ओर उसने मुंबई
में अपने दोस्तों को फ़ोन किया
संदीप को सबक सिखाने और खुद अगली शाम फ्लाइट लेकर मुंबई आ गया. संदीप
से उसकी बहस हुई ओर हाथापाई भी.
उसके बाद ऑफिस में राघव ओर रिद्धिमा को
लेकर चर्चा होने लगी. शायद दोनों भी यही चाहते
थे. किन्ही कारणों से रिद्धिमा को
अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी ओर अपने शहर पटना वापस चली गयी. राघव उसको उस रात उस
रेल तक छोड़ने गया, उसे लगा शयद ये आखरी रेल
है.
रिद्धिमा पटना जा चुकी थी
ओर राघव मुंबई में अपने काम में व्यस्त हो गया था.
उन दोनों की बात फ़ोन
पर ही होती थी
उसके जाने के बाद दोनों
की कभी मुलाकात नहीं हुई थी. कुछ समय बाद राघव ने रिद्धिमा से
वही कहना चाही जो उस रात
वो समद्र किनारे कहना चाहता था ओर शायद
इस बार रिद्धिमा भी इस बात
को समझ गयी थी. राघव ने अपने मन
की बात रिद्धिमा से कह दी
और रिद्धिमा ने भी उस
पर अपनी हामी अपनी आखों से जवाब देकर
भरी. दोनों ही शायद उससे
ज़्यादा कभी खुश नहीं हुए होंगे. पर राघव की
ख़ुशी का ठिकाना ही
नहीं था. दोनों ने तय किया
अगले हफ्ते राघव पटना जाएगा जहाँ रिद्धिमा अपने परिवार के साथ रह
रही थी.
राघव
और रिद्धिमा की मुलाकात एक
लम्बे आरसे बाद हो रही थी
दोनों की आखें इस
इंतज़ार के लम्हे को
अपने-अपने अंदाज़ में बयां कर रहीं थीं.
दोनों ने ये तय
किया की अब उन्हें
मंगल परिणय में बंध जाना चाहिए. ये तय हुआ
की दोनों अपने घरों में इस बारे में
बात करेंगे. उन्होंने ने एक-दूसरे
को भरोसा दिलाया की अब शायद
हमे अलग ना रहना पड़े.
कुछ दिनों बाद दोनों ने अपने परिवार
से इस बारे में
बात की, जैसा हमेशा होता है कुछ परेशानियों
के बाद दोनों के परिवार राज़ी
हो गए. रिद्धिमा ने राघव को
वीडियो कॉल किया, बात करते हुए उनकी आखों से अश्क़ बहने
लगे. दोनों ने तय किया
की वो मुंबई में
फिर मिलेंगे उसी समुद्री किनारे पर. और अगले दिन
रिद्धिमा पटना से मुंबई के
लिए चली मन
में लाखों ख्याल और बातें लिए
हुए. राघव उसके लेने एयरपोर्ट आया और दोनों शाम
होते-होते मरीन ड्राइव पहुँच गए और सूरज
ढलते हुए उनके कदम जुहू बीच की ओर चलने
लगे. दोनों फिर वही पल जीना चाहते
थे जो कुछ महीने
पहले उन्होंने जिया था.
अगले
दिन शाम को रिद्धिमा मीठी
यादें लिए हुए पटना चली गयी. दोनों के घरों में
शादी की तैयारी होने
लगी, समय नज़दीक आ रहा था
और तैयारियां ज़ोर पकड़ रहीं थी. तभी सुबह रिद्धिमा का फ़ोन बजा
वहां से राघव था,
उसने जो कहा उसको
सुन रिद्धिमा के पैरों टेल
ज़मीन खिसक गयी. राघव ने कहा में
अभी शादी नहीं कर सकता. रिद्धिमा
ने हिम्मत करते हुए कारण पुछा तो राघव ने
कहा - उसका सपना पूरा होने वाला है उसे जर्मनी
से काम करने के लिए ऑफर
आया है और वो
इसको जाने नहीं देना चाहता. रिद्धिमा ने काफी समझाने
की कोशिश की पर उसने
एक ना सुनी. राघव
का सपना पूरा हो रहा था
पर रिद्धिमा एक अँधेरी खायी
में गिरती जा रहीं थी.
उसने अपने घरवालों को बताया वो
सब निरुत्तर थे और दुखी.
इस दफा जो अश्क़ थे
उनमे गम था. रिद्धिमा
के परिवार ने राघव के
घर पर बात की
पर राघव अपने घर पर पहले
ही स्तिथी साफ़ कर चुका था.
अब आखरी कोशिश के रूप में
राघव और रिद्धिमा की
मुलाकात को ज़रिया बनाया
गया.
उनकी
मुलाकात रंग लायी और राघव मान
गया. पर इस बार
रिद्धिमा अपने मन में कुछ
कड़वे सवाल लेकर जा रहीं थी.
पटना में उसने कहा उसे समय चाहिए, परिवार के लाख मनाने
पर वो नहीं मानी.
अब शादी तो टल चुकी
थी. मुंबई में राघव आपे से बाहर
हो रहा था और पटना
में रिद्धिमा अपने आपको ढूंढ़ने की कोशिश कर
रहीं थी. अब परिवारों ने
उनको उनके हाल पर छोड़ दिया
था. रिद्धिमा अपने आप को राघव
के साथ ता उम्र रहने
के लिए मना नहीं पा रही थी.
दोनों ने काफी दिनों तक फ़ोन पर बात की फिर एक मुलाकात तय हुई दिल्ली में जो ना राघव का शहर था ना रिद्धिमा का. शायद उनके लिए ये आखरी मुलाकात थी. दोनों की मुलाकात राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर हुई और वो वहां से अक्षरधाम मंदिर गए. उनके बीच देर शाम तक बात होती रही फिर ये तय हुआ जिसकी दोनों को उम्मीद थी "वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा". शायद इसके लिए राघव जितना ज़िम्मेदार था उतना रिद्धिमा नहीं. उस शाम राघव रिद्धिमा को पटना के लिए स्टेशन तक छोड़ने गया और ये वो "आखरी रेल" थी जिसकी कल्पना उसने कभी की थी. रिद्धिमा पटना के लिए निकल गयी थी और राघव .............
दोनों ने काफी दिनों तक फ़ोन पर बात की फिर एक मुलाकात तय हुई दिल्ली में जो ना राघव का शहर था ना रिद्धिमा का. शायद उनके लिए ये आखरी मुलाकात थी. दोनों की मुलाकात राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर हुई और वो वहां से अक्षरधाम मंदिर गए. उनके बीच देर शाम तक बात होती रही फिर ये तय हुआ जिसकी दोनों को उम्मीद थी "वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा". शायद इसके लिए राघव जितना ज़िम्मेदार था उतना रिद्धिमा नहीं. उस शाम राघव रिद्धिमा को पटना के लिए स्टेशन तक छोड़ने गया और ये वो "आखरी रेल" थी जिसकी कल्पना उसने कभी की थी. रिद्धिमा पटना के लिए निकल गयी थी और राघव .............
सानिध्य पस्तोर
very beautiful story dada..nice written..
ReplyDeleteAapki kahani Ka anjam Dil ko chahe Accha Nahi lage Magar har kahani Ka ant Dil ke liye Sahi ho zaruri to Nahi.
ReplyDeleteBhut Accha Likha hai dada
सही निर्णय के साथ रिद्धिमा। बहुत अच्छा लिखा।
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