अनसुलझी सी दास्तान
ना जाने क्यों उसे देखकर हर मर्तबा दिल को दिलासा दिया
अक़्ल पर ना जाने क्यों बेहमुद्दत सा पर्दा रहने दिया,
उसके लिए तो हम हम से वो होने को तैयार थे
ना जाने क्यों उसने हमे हम ही ना रहने दिया .
मुझे ये इल्म था की वो अब होकर भी नहीं रही
मैंने उसे ज़ेहनी क़िस्म से रुक्सत कर दिया,
मुझे यकीन था उसके ना होने में उसकी भी रज़ामंदी होगी,
कोई ना कोई माक़ूल दलील भी रही होगी.
उसके ना होने पर रंजीदगी का कोई सवाल ही नहीं
मेरे लिए ये दुनिया केवल वो ही नहीं,
मैं बस ये तस्लीम करने की आरज़ू रखता हूँ
की जो दास्तान सुलझने को तैयार थी वो उसने अनसुलझी क्यों रहने दी.
सानिध्य पस्तोर
ना जाने क्यों उसे देखकर हर मर्तबा दिल को दिलासा दिया
अक़्ल पर ना जाने क्यों बेहमुद्दत सा पर्दा रहने दिया,
उसके लिए तो हम हम से वो होने को तैयार थे
ना जाने क्यों उसने हमे हम ही ना रहने दिया .
मुझे ये इल्म था की वो अब होकर भी नहीं रही
मैंने उसे ज़ेहनी क़िस्म से रुक्सत कर दिया,
मुझे यकीन था उसके ना होने में उसकी भी रज़ामंदी होगी,
कोई ना कोई माक़ूल दलील भी रही होगी.
उसके ना होने पर रंजीदगी का कोई सवाल ही नहीं
मेरे लिए ये दुनिया केवल वो ही नहीं,
मैं बस ये तस्लीम करने की आरज़ू रखता हूँ
की जो दास्तान सुलझने को तैयार थी वो उसने अनसुलझी क्यों रहने दी.
सानिध्य पस्तोर
Beautiful..
ReplyDeleteWahhhh
ReplyDeletedhanyavad
DeleteKya bat he dada zindigi ki gehrai me utar gye apto
ReplyDeletebohot bohot dhanyavad
DeleteBeautiful
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteYe baat....ranzeedgi ka sawal hi nhi PR sulajh jati to behtar tha. Bahut sawaar ke likha hai....Gam to nhi par na sulajhne ka pachhtawa....kamaal ka mishran👌
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