ये घना अंधेरा छाया है जिसका हम पर तुम पर हम सब पर छाया है,
सूरज की किरणें भी आती हैं संग अपने पंछियों की वाणी भी लाती हैं,
पर इस स्याह अंधेरी रात का डर मन में इतना रहता है,
ना जाने क्यों दमकता सूरज भी बादलों में डरा-छुपा सा लगता है,
पर एक रोज़ नई किरण आएगी इस स्याह अंधेरे को ले जाएगी,
उस रोज़ मन में फिर उमंग जगेगी, पंछियों की आवाज़ फिर मधुर लगेगी,
तन-मन को मिट्टी की भीनी खुशबू मिलेगी, ज़िन्दगी फिर तेज़ रफ़्तार से चल पड़ेगी,
तब तक इस स्याह अंधेरे से हम सबको मिलकर लड़ना है।
सानिध्य पस्तोर (एक मुसाफ़िर)
No comments:
Post a Comment